आस्था
आस्था जब से पत्नी ने उस अतिथि को घर पर लाया था वह मेरी नाराज़गी का कारण बन गया था । मेरा मानना है कि प्रकृति स्वयं की देखभाल करना जानती है उसमे हमें दखलंदाज़ी नहीं करना चाहिए । घर के सभी लोग उसे वी. आई. पी. मानकर उसकी खिदमत में जुट गए थे । हकीकत तो यह थी कि मुझे भी उसकी सेवा में जुट जाना चाहिए था। शाम को घर लौटा तो देखा कि उसका एक कार्डबोर्ड का घर बन गया था । उसके अंदर नर्म मुलायम रुमाल की गद्दी बिछा दी गयी थी । छोटे बेटे ने अपना ठिया वहीं आस पास बना लिया था । उसकी कौतुहल भरी नज़र उस नन्हे प्राणी पर टिकी रहने लगी थी । वैसे भी उसका जीव प्रेम जग जाहिर था और कई बार उफन कर बाहर आ जाता था। मैं नज़र चुराकर देखता था कि किस तरह पत्नी और बेटा मिलकर ड्रॉपर के माध्यम से उस जीव को पानी और दूध पिलाने का उपक्रम करते रहे थे। एक दो बार मैं अपनी ' दुष्टता ' पर उतर ही आया था और गुस्से में कह डाला था "छोड़ आओ इसे जहाँ पर मिला था , वह अपनी जिंदगी खुद जी लेगा !" लेकिन मेरी इस फटकार का किसी ...