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आस्था

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  आस्था   जब से पत्नी ने उस अतिथि को   घर पर लाया था   वह मेरी नाराज़गी का कारण बन गया था ।   मेरा मानना है कि प्रकृति स्वयं की देखभाल करना जानती है उसमे हमें दखलंदाज़ी नहीं करना चाहिए । घर के सभी लोग उसे वी. आई. पी. मानकर उसकी खिदमत में जुट गए थे ।   हकीकत तो यह थी   कि मुझे भी उसकी सेवा में जुट जाना चाहिए था।     शाम को घर लौटा तो देखा कि उसका एक कार्डबोर्ड का घर बन गया था ।   उसके अंदर नर्म मुलायम रुमाल की गद्दी बिछा दी गयी थी ।   छोटे बेटे ने अपना ठिया वहीं आस पास बना लिया था ।   उसकी कौतुहल भरी नज़र उस नन्हे प्राणी पर टिकी रहने लगी थी ।   वैसे भी उसका जीव प्रेम जग जाहिर   था और कई बार उफन कर बाहर आ जाता था।   मैं नज़र चुराकर देखता था कि किस तरह पत्नी और बेटा मिलकर ड्रॉपर के माध्यम से उस जीव को पानी और दूध पिलाने का उपक्रम करते रहे थे।   एक दो बार मैं अपनी ' दुष्टता ' पर उतर ही आया था और गुस्से में कह डाला था "छोड़ आओ इसे जहाँ पर मिला था , वह अपनी जिंदगी खुद जी लेगा !" लेकिन मेरी इस फटकार का किसी ...

दो शब्द

  दो शब्द   वो अचानक आया और झुककर मेरे पाँव छू लिए।   अपने हाथों में थामे कार्ड को बड़े आदर से मुझे देते हुए कहा "जरूर आइयेगा !"   अचकचाकर मैंने कार्ड देखा तो शादी का आमंत्रण था।   मैंने प्रसन्नता से कहा "छिपे रुस्तम ! शादी कर रहे हो ?"   चहकते हुए वह बोला " हाँ , भाई साहब !" बोलते हुए अचानक उसकी आँखों में चमक आ गयी।   "आपके दो शब्दों ने मेरी तो दुनिया ही बदल दी।   आप शायद भूल गए होंगे।   आपका और मेरे घर से निकलने का समय लगभग एक ही होता था।   और आप हमेशा मुझे अपनी एक्टिवा से लिफ्ट दे देते थे और बस स्टॉप तक छोड़ते थे।   वे मेरी बैंक की परीक्षा की तैयारी के संघर्षमय दिन थे।   मैं उन दिनों अपने   टिफ़िन और किताबें लेकर रोज लाइब्रेरी (पढ़ने की जगह) जाता था। "   " परीक्षाएं देते देते निराश हो गया था। उस दिन काफी हताश था और सोच रहा था कि यदि इस बार पास नहीं हुआ तो तैयारी छोड़कर एम. आर. - मेडिकल रिप्रेजेन्टेटिव की नौकरी कर लूंगा।"   " लेकिन आपने मेरी व्यथा सुनकर ढाँढस बंधाया था और वे दो शब्द कहे जिसने म...

जीवन की पाठशाला

  जीवन की पाठशाला डॉ कुमार आज बहुत ही थक गए थे।   पिछले दिनों से वे अपनी टीम के साथ एक प्रेजेंटेशन बनाने में व्यस्त थे।   इस प्रेजेंटेशन को उन्हें शिक्षा मंत्री के समक्ष प्रस्तुत करना था।   विभाग के प्रमुख सचिव ने भी इस प्रस्तुति में काफी रूचि दिखाई थी और वे   कई बार डॉ कुमार से इसकी प्रगति के बारे में पूंछते रहे थे।   वे क्यों न पूंछते , कुमार शिक्षा विभाग के आला अफ़सर जो ठहरे। प्रेजेंटेशन का विषय भी काफी प्रासंगिक था :   "कोरोना काल के बाद बच्चों की स्कूल में शानदार वापसी" , इस विषय पर जमीनी हकीकत बतानी थी।   जिलों में कार्यरत अधिकारियों ने अच्छी रिपोर्ट भेजी थी।   रिपोर्ट के मुताबिक एक बड़ी ही आशावादी तस्वीर मंत्री जी के सामने पेश की गयी।    प्रमुख सचिव ने मंत्री महोदय के समक्ष बड़ी   ही मनभावन प्रस्तुति दे दी ।   मंत्री जी का   मूड आज अच्छा था और वे काफी प्रसन्न दिख रहे थे।   शाम को मंत्रालय से वापस कार्यालय आकर डॉ कुमार काफी तनावमुक्त थे।   मन की मन सोच रहे थे चलो एक बड़ा सिर दर्द टल गया।   ऑफि...