दो शब्द

 

दो शब्द

 

वो अचानक आया और झुककर मेरे पाँव छू लिए।  अपने हाथों में थामे कार्ड को बड़े आदर से मुझे देते हुए कहा "जरूर आइयेगा !"

 

अचकचाकर मैंने कार्ड देखा तो शादी का आमंत्रण था।  मैंने प्रसन्नता से कहा "छिपे रुस्तम ! शादी कर रहे हो ?"

 

चहकते हुए वह बोला " हाँ , भाई साहब !" बोलते हुए अचानक उसकी आँखों में चमक आ गयी।  "आपके दो शब्दों ने मेरी तो दुनिया ही बदल दी।  आप शायद भूल गए होंगे।  आपका और मेरे घर से निकलने का समय लगभग एक ही होता था।  और आप हमेशा मुझे अपनी एक्टिवा से लिफ्ट दे देते थे और बस स्टॉप तक छोड़ते थे।  वे मेरी बैंक की परीक्षा की तैयारी के संघर्षमय दिन थे।  मैं उन दिनों अपने  टिफ़िन और किताबें लेकर रोज लाइब्रेरी (पढ़ने की जगह) जाता था। "

 

"परीक्षाएं देते देते निराश हो गया था। उस दिन काफी हताश था और सोच रहा था कि यदि इस बार पास नहीं हुआ तो तैयारी छोड़कर एम. आर. - मेडिकल रिप्रेजेन्टेटिव की नौकरी कर लूंगा।"

 

"लेकिन आपने मेरी व्यथा सुनकर ढाँढस बंधाया था और वे दो शब्द कहे जिसने मेरा पूरा मानस ही बदल दिया ।"

 

वैसे मुझे अपने  ज्ञानी होने का कोई गुमान नहीं था  फिर भी मुझे आश्चर्य हुआ कि मेरी  किसी बात से  किसी के जीवन में बदलाव आ सकता है क्या ?

मेरी उलझन को समझते हुए उसने कहा "आपके उन शब्दों के बाद मैंने पूरे मन से पढाई की और ग्रामीण बैंक में अधिकारी बन गया हूँ।  आपको काफी दिनों से याद कर रहा था।  आज ही योग मिला। "

 

उसकी आंखों में ख़ुशी के आंसू थे।  अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए उसने कहा "उस दिन चलते चलते आपने मेरी पीठ पर हाथ रखते हुए कहा था :  ट्राय अगेन !"

 

हम दोनों अब अनजान आनंद की लहरों पर गोते लगा रहे थे।

 

 

आशीष कोलारकर

01.11.2021

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