भोपाल गैस त्रासदी : एक आम आपबीती

 

भोपाल गैस त्रासदी : एक आम आपबीती

 

भोपाल गैस त्रासदी को आज 37 साल हो गए।  इन 37 सालों में दुनिया पूरी तरह बदल गयी है।  लाखों गैस पीड़ितों को वह रात आज भी याद है जिसने उनकी दुनिया पूरी तरह बदल डाली।  क्या हम सभी ने बीसवीं सदी की भयावह औद्योगिक दुर्घटना को पूरी तरह भुला दिया है ? गैस पीड़ित और उनकी पीड़ा आज किसे याद है ?

 

मुझे आज भी 37 साल पहले 2 दिसंबर की रात भूले नहीं भूलती।  रात के करीब 2 बजे अचानक हमारे मोहल्ले में शोर शराबा शुरू हो गया था ।  मोहल्ले के खान परिवार के रिश्तेदार जो पुराने  भोपाल में रहते थे, भागकर यहाँ आ गए थे।  उनके अनुसार पुराने भोपाल के काफी लोग गैस की चपेट में आ गए हैं और गंभीर हालत में हैं।  विश्वास ही नहीं हो रहा था। कहाँ की गैस रिसी होगी ? कोई कह रहा था यूनियन कार्बाइड का टैंक फ़ट गया है और गैस फ़ैल गयी है। पिताजी (अब स्वर्गीय ) का ऑफिस पुराने भोपाल में ही था और उन्हें याद आया कि ऐसी ही दुर्घटना कुछ वर्ष पहले हुई थी और उसका काला धुँआ कई किलो मीटर तक दिखाई   दिया था।  उस मामले को फिर रफा दफा कर दिया गया था।  लेकिन पुराने भोपाल के काफी लोगों को कार्बाइड प्लांट और उसमे बनने वाली जहरीली गैस की जानकारी थी।

 

चौथे माले के मेरे घर पर स्थित गैलरी में आया तो अँधेरे में देखता हूँ कि हज़ारों लोगों की भीड़ भदभदा रोड पर बदहवास भाग रही है।  यह रोड शहर के बाहर जाती थी और पुराने भोपाल से कनेक्टेड थी। लोग भाग तो रहे थे लेकिन किसी को यह गुमान नहीं था की हवा से कोई जीत सका है भला ? हादसे की भयावहता को अभी महसूस कर पाना कठिन था।  परिवार में सभी को दूसरे दिन स्कूल और काम पर जाना था इसलिए सभी "कल देखेंगे" कहकर फिर बिस्तर में दुबक गए।

 

दूसरे दिन सुबह मेरी केमिस्ट्री की ट्यूशन थी।  जब मैं वहां पहुंचा तो हमारे सर गैस रिसाव पर ही चर्चा कर रहे थे। पता लगा कि 1250 एरिया के अस्पताल में हज़ारों गैस पीड़ित बेहाल थे क्योंकि गैस रिसाव का एंटीडोट किसी को पता नहीं था।  सर  केमिस्ट्री के फॉर्मूले से रिसी हुई गैस का विश्लेषण कर रहे थे। एक बात उन्होंने कही जो मुझे आज भी याद है।  उन्होंने कहा "आज से सालों बाद इस हादसे के बारे में तुम्हे अपने बच्चों और नाती पोतों को बताना होगा।  ऐसी दुर्घटना कभी न हो !" सर काफी ज्ञानी थे और उन्हें हादसे से हुए नुकसान के बारे में आभास हो गया था। मेरा अज्ञानी मन अभी भी इस हादसे की भयावकता को समझने में सक्षम नहीं था।

 

घर चलने लगा तो कुछ अजीब सा माहौल लगा।  पूरा शहर एक तरह के सदमे में था। घर आया तो अखबारों में त्रासदी के बारे में बहुत कुछ लिखा हुआ था। अफवाहों का बाज़ार गर्म था। कुछ खबरें परत दर परत खुलती गई।  बीती रात प्रशासन लगभग नहीं था।  ऐसा पता लगा कि मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह अपनी केरवां स्थित निजी कोठी की और प्रस्थान कर गए हैं।  पता लगा कि भोपाल स्टेशन मास्टर ने अपनी सूझ बूझ का  परिचय देते हुए दिल्ली से आने वाली रेलगाड़ियों को कार्बाइड फैक्ट्री से काफी पहले रोक दिया था ।  साथ ही मुंबई से से आने वाली गाड़ियों को आगे  नहीं जाने दिया। इससे हज़ारो लोगों की जान बची लेकिन स्टेशन मास्टर धुर्वे बच नहीं सके।  भोपाल स्टेशन पर आज भी उनका स्मारक है।

 

दिन का घटनाक्रम तेजी से बदल रहा था।  दोपहर को अफवाह उड़ी कि एक बार फिर गैस रिस गयी है और नए भोपाल की और बढ़ रही है।  इसके बाद अफरा तफरी का माहौल बन गया।  लेकिन हमने घर पर रहना ही उचित समझा।  शाम तक स्थिति सुधरी जब रेडियो से अफवाहों का खंडन किया गया।  इस बीच भोपाल के एकमात्र बड़े अस्पताल हमीदिया की व्यवस्थाएँ मरीजों की अचानक आवक से चरमरा गयी। डॉक्टर और दवाइयां कम पड़ने लगी।  रेजिडेंट डॉक्टर और मेडिकल कॉलेज के छात्र अपनी जान की परवाह किये बिना सेवा में लग गए। 

 

स्कूल और कॉलेजों को बंद कर दिया गया।  मेरी शाला  मॉडल स्कूल को भी अस्थायी कैंप बनाया दिया गया। अक्टूबर 84 में इंदिरा गाँधी के हत्याकांड और उसके बाद उपजे तनाव के बाद से स्कूल लगना अभी शुरू ही हुए थे कि यह दूसरी घटना हो गयी।  मेरी हायर सेकेंडरी की परीक्षा मार्च माह में होनी थी जो इन हालातों के चलते अनिश्चितता में डूब गयी।  इस अनिश्चय ने मेरे जैसे आम छात्र के  मानस पर ऐसा विपरीत प्रभाव डाला था  कि उसकी भरपाई आज तक नहीं हो पायी है।

 

अब इस बात का अहसास होने लगा था कि जाड़े के दिन होने से गैस का रिसाव ज्यादा बड़े इलाके में नहीं हो पाया था।  वातावरण में  भारीपन होने से गैस को आगे फैलने का अवसर नहीं मिल पाया था।  यदि गर्मी के दिन होते तो गैस तेज़ी से फैलती और मौतों की संख्या की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी।  हमारा इलाका फैक्ट्री से करीब 15 - 20 किलो मीटर दूर था इस कारण से गैस का प्रभाव हम तक नहीं पहुँच पाया था।

 

रेडियो और अख़बारों से पता लगा था  कि घटना की विश्व भर में चर्चा हो रही है और हज़ारों लोगों के मौत हो चुकी है।  शमशान, कब्रिस्तान में लाशों के अंतिम संस्कार के लिए लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी थी ।  अपने परिजनों को खोने वाले हर जात, धर्म के लोग थे ।  लाखों लोग सांस लेने में कठिनाई महसूस कर रहे थे । गर्भवती महिलाएं भी गैस से प्रभावित हो गयी थीं ।  आगे जन्म लेने वाले बच्चों पर इसका  परिणाम होगा इसके बारे में कोई नहीं जानता था। हमीदिया हॉस्पिटल का परिसर लाशो और मरीजों से पट गया था। 

 

 

इस बीच युवा प्रधान मंत्री राजीव गाँधी  भी अचानक भोपाल की यात्रा पर आ गए थे।  उन्होंने अभी कुछ ही दिनों पहले अपना पद ग्रहण किया था।  विदेशी  पत्रकार और राष्ट्रीय मीडिया के लोग भी भोपाल में अपनी दस्तक देने लगे थे। शायद प्रख्यात फोटोग्राफर रघु राय भी भोपाल आ चुके थे।  उनकी खींची हुई एक मासूम को दफ़नाने वाली फोटो ने सभी को झकझोर कर रख दिया था।

 

घटनाएं बहुत ही तेजी से घटी रही थी।  ख़बरों से पता लगा कि यूनियन कार्बाइड का कर्ता धर्ता  वारेन एंडरसन भी भोपाल आ चुका था।  उसे तुरंत गिरफ्तार कर लिया था।  लेकिन असलियत यह थी की जनता के आक्रोश को देखते हुए उसे तुरंत दिल्ली रवाना कर दिया गया  था और वहाँ से अमेरिका । भोपाल के एस. पी. स्वयं अपने वाहन  से उसे एयरपोर्ट पर  छोड़ने गए थे जिसकी फोटो बाद में अख़बारों में छपी थीं।

My Tribute to those 15000 innocent people who fell victim to one of the Worst Industrial Tragedies of the Century.

The photo gallery of the tragedy (hosted by Outlookindia.com)

https://www.outlookindia.com/photos/topic/bhopal-gas-tragedy

© आशीष कोलारकर

02.12.2021

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