मन के जीते जीत

 

आनंद बजाज आज अपने आप को कई बार आईने में देख रहे थे । अपने बचे हुए बालों को कभी कंघी से तो कभी अपने हाथों से संवारते । इस बची खुची दौलत की उन्होंने कभी भी परवाह नहीं की थी । लेकिन आज मजबूरी थी । अपने बेल्ट को ठीक करते हुए उन्होंने पत्नी को पुकारा “सुनो ! जल्दी नाश्ता लगा देना आज एक जगह समय पर पहुंचना है ।”

 

पत्नी ने नाश्ता लगा दिया । वह आज पति के उतावले व्यवहार को लेकर अचंभित थी । बजाज का रोज का नियम तय था । वे सुबह जल्दी उठ जाते , सैर को जाते और उसके बाद करीब  एक घंटा योग और प्राणायाम में जुट जाते । अपने इस रूटीन के बाद वे इत्मिनान से अखबार पढ़ते और फिर ऑफिस जाने की तैयारी करते ।

 

कोरोना काल में भी उन्होंने अपने इस डेली रूटीन में ज्यादा तबदीली नहीं की थी । अपने सुबह के उपक्रम के बाद वे अपने कंप्यूटर के सामने बैठ जाते और अपना काम काज निपटाते । जब से कोरोना की बंदिशें आरम्भ हुई थी आनंद का काम शुरू में तो ठीक ठाक चला लेकिन जिस अखबार में वे ग्राफ़िक डिज़ाइनर की हैसियत से काम करते थे उसके मैनेजमेंट को वे खटकने लगे थे ।

 

अकबारों की खपत पर भी कोरोना का विपरीत असर पड़ा था । बहुतेरे लोगों ने व्हाटस एप्प यूनिवर्सिटी की इस खबर पर यकीन कर लिया था कि अखबार के कागज़ के माध्यम से भी कोरोना के विषाणु फैल जाते हैं । कई लोगों ने आर्थिक कारणों से अखबार लेना बंद कर दिया और कुछ टेक स्मार्ट लोग तो मोबाइल या इन्टरनेट पर ई-पेपर पढने लगे थे । काम धंधा बंद होने से अखबारों को इश्तेहार मिलना भी बंद हो गए थे । इससे अख़बारों की माली हालत ख़राब होने लगी । अब लोगों की हटाने की उलटी गिनती होने लगी । आखिर वह दिन आ ही गया जब शाम को एच. आर. डिपार्टमेंट की ओर से एक ई-मेल आ गया जिसमे लिखा था कि अखबार को अब आनंद की सेवाओं की आवश्यकता नहीं है ।

 

आनंद पर तो मानो आसमान से बिजली ही गिर पड़ी थी । इस आघात से वे अन्दर तक हिल गए । उनके बेटे ने हाल ही में कॉलेज में एक महंगे कोर्स में दाखिला लिया था  और उसकी फीस भरने के लिए आनंद को काफी सारी बचत दांव पर लगानी पड़ी थी । आनंद पर अपने फ्लैट की इ. एम. आई. भरने की भी मजबूरी थी । इन सब का बोझ अब आनंद को भारी पड़ने वाला था ।

 

लेकिन आनंद बजाज मेहनती और अत्यंत कुशल डिज़ाइनर थे । अब उनके मित्र और पुराने सम्बन्ध काम आये । उनके माध्यम से आनंद को कुछ न कुछ काम मिलता गया और उनकी गाड़ी  चल  निकली । लेकिन हर महीने काम मिलना और उसका दाम समय पर मिलना एक बड़ी चुनौती थी ।

 

 

अभी कुछ ही दिनों पहले आनंद की एक पुराने मित्र के साथ फ़ोन पर बातचीत चल रही थी । जब मित्र को आनंद की परिस्थिति के बारे में पता लगा तो उसने आनंद को एक स्टार्ट अप के बारे में बताया जिसे एक ग्राफ़िक डिज़ाइनर की जरुरत थी । मित्र ने सुझाव दिया कि आनंद स्टार्टअप के कर्ताधर्ताओं से स्वयं मिले और बात करें ।

 

आनंद आज उस ही स्टार्टअप की टीम से मिलने जा रहे थे । उनके मन में कुछ अजीब से ख़यालात चल रहे थे । इतने बड़े अखबार में काम करने के बाद एक छोटे से सेटअप में काम मांगना उन्हें अजीब लग रहा था । लेकिन हालात तो कुछ भी करवा सकते हैं ।

 

वे नियत समय पर स्टार्टअप के दफ़्तर में पहुँच गए । दफ़्तर क्या वह तो एक छोटा सा फ्लैट था जहाँ पांच छह युवा काम करते थे । आनंद ने अपना बायो डाटा गार्ड के माध्यम से अन्दर पहुँचा  दिया । उन्हें तुरंत अन्दर बुलावा लिया गया । आनंद ने अपना परिचय दिया और सभी युवा अपनी अपनी रिवोल्विंग कुर्सियों को घुमाकर आनंद के इर्द गिर्द बैठ गए । आनंद को आश्चर्य हुआ कि बहुत से युवाओं ने अखबार में उनका काम देखा था । ग्राफ़िक डिज़ाइनर को रोज ही खबरों को सजाने का काम मिलता है जो कि चुनौती भरा होता है । उसमे यदि पाठकों की दाद मिल जाये तो क्या कहना ?

 

स्टार्ट अप को हाल में एक अच्छी फंडिंग मिली थी और इसलिए सभी काफी उत्साहित थे । आनंद ने संकोच करते हुए अपनी मांग रख दी । एक युवा, जो टीम का प्रमुख लग रहा था, उसने अन्य साथियों की ओर देखा और पूंछा “गाइस ! योर ओपिनियन प्लीज !!” ज्यादातर टीम मेम्बर एक सुर में बोले “नो प्रॉब्लम !” अब बारी लीडर की थी और उसने कहा “मिस्टर बजाज ! वी वेलकम यू तो अवर टीम । कैन यू ज्वाइन उस फ्रॉम टुमारो ?” आनंद ने सर हिलाकर सहमती दे दी ।

 

आनंद को सुखद आश्चर्य हुआ था । युवा टीम के साथ काम करने का अवसर मिलने की उन्हें मिश्रित प्रसन्नता भी हुई । “थैंक यू ! विल मीट टुमारो !!” कहकर वे विदा लेने लगे । सभी युवा भी अपने अपने कामों में व्यस्त हो गए ।

 

 

वे ज्यों ही कमरे से बाहर निकले उन्हें गार्ड ने अभिवादन किया । अचानक सोफे पर बैठे एक युवा को देखकर वे चौंक गए । उसके हाथ में फाइल थी और वह काफी नर्वस लग रहा था । “यहाँ कैसे ?” वह पड़ोस के मोहल्ले के शर्मा जी का बेटा विनय था । कुछ समय पहले ही उसने एक प्राइवेट कॉलेज से डिजाइनिंग का कोर्स किया था । शर्मा जी ने एक दो बार उसका जिक्र किया भी था । आनंद के मार्गदर्शन के लिए विनय कभी कभी फ़ोन कर लेता था ।

 

“जॉब के लिए आया था अंकल !” आनंद को ध्यान आया कि अभी हाल में ही शर्मा जी सेवा निवृत्त हो गए थे । शर्मा जी की छोटी सी नौकरी में पेंशन भी छोटी सी थी । उनका परिवार कठिन समय से गुज़र रहा था ।

 

आनंद को अपने कार्य प्रयोजन पर शर्म आने लगी । उन्होंने अपने फोल्डर से एक कागज़ निकाला, जल्दी से उस पर कुछ लिखा और गार्ड को थमाते हुए कहा “इसे अन्दर बॉस को दे देना ।“ और वे फुर्ती से बाहर की ओर चल दिए ।

 

जब तक गार्ड अन्दर जाता विनय का इंटरव्यू शुरू हो चुका था । गार्ड के दिए हुए कागज़ को बॉस ने सरसरी तौर पर पढ़ा और फिर जोर से अपनी टीम के सामने दोहरा दिया :

 

“फ्रेंड्स !

थैंक यू फॉर योर ऑफर ।

 

आई थिंक यंग मैन विनय डीझर्व थिस जॉब । बिलीव मी ही विल सर्व यू बेटर देन मी !

 

आनंद"

 

 

 

©आशीष कोलारकर

E-mail : kolarkarashish@gmail.com

April 17, 2022

Comments

  1. कोरोना काल ने हम सबको बहुत कुछ सिखाया है। बस हम कितना ध्यान में रखते है यह बात महत्वपूर्ण है।

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